शीर्षक- वो माँ ही तो होगीयाद कीजिये वो दिनजब आप कभी भूख से रोये होंगेमाँ समझ गयी होंगीऔर आपको अपने आँचल के ओट में छिपा लिया होगाआपको अपने सीने से लगा लिया होगायाद कीजिये वो दिन जब आप जोर से छींकते होंगेवो माँ ही तो होगीजिसने आपको काढ़ा पिला दिया होगाअपने गोद में सिमटा लिया होगायाद कीजिये वो दिनजब खेल खेल में किसी सेचोट लग गयी होगीवो माँ ही तो होगी जो आपके लिए पूरे मोहल्ले से लड़ गयी होगीयाद कीजिये वो दिनजब आपको नींद नहीं आती होगीवो माँ ही तो होगीजो आपको लोरी सुनाती होगीनींदिया को बुलाती होगीयाद कीजिये वो दिनजब माँ आपके लिए रोटी बनाते हुए अपना हाथ जलाती होगीआपके पूछने पर सिर्फ मुस्कुराती होंगीयाद कीजिये वो दिनआपके बीमार होने पर जोरात-रात भर मालिश करती होंगीआप सोते रहे इसलिए रात भर जागती होगीयाद कीजिये वो दिनजब आपके सलामती के लिएवो मंदिर ,मस्जिद गुरुद्वारे जाती होगीआपके लिए मन्नते मांगती होगीवो माँ ही तो होगी———अभिषेक राजहंस
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बहुत सुन्दर भाव हैं…माँ का ध्यान अपने बच्चे में ही रहता है….इस लिए हर हाल में माँ बच्चे के पास होती है…….हाँ “याद कीजिये” आपकी रचना में अटक रहा है मुझे ….इसमें याद करने वाली बात नहीं है….कुछ भी होता है तो माँ हमेशा पहले ज़हन में आती है… “याद कीजिये” जबरदस्ती वाली बात लगती है मुझे… जबकि माँ तो अंतःकरण में अपने आप मुखर होती है…मेरी सोच में….
Babbu ji kaa sujhaav tarksangat hai.