*रूठा सारा संसार पिये..*तुम रूठे हो, यूँ लगता है, रूठा सारा संसार पिये।तन मन दोनों हैं एक अगर,क्यों इतने तीखे वार पिये।क्या हार यहाँ,क्या जीत यहाँ, जीवन ये कोई खेल नहीं।है जीत अगर चाहत तेरी,हर हार मुझे स्वीकार पिये। जीवन भर की ,क्या बात करूँ, मैं इक लम्हे पे कहता हूँ।तुझ बिन बीते इक पल ग़र तो, है उस पल को इनकार पिये।फीके-फीके हैं रंग सभी तुम बिन, हर,रात अमावस सी।सुर हैं रूठे,उलझी तानें,सूनी है हर झंकार पिये।काला ये दिन काली रैना,मेरी किस्मत काली स्याही।मेरे हाथों की रेखा में,कालिख है बारम्बार पिये।इस मधुर मिलन की बेला में, जब कण-कण जग का पुलकित है।कलियाँ सारी खिलना चाहें, क्यों मेरा मन बेज़ार पिये।सच है मैं चुप रह जाता हूँ सब कुछ यूँ ही सह जाता हूँ।मैं भी तुझ सा ही कोमल हूँ , मुझमें भी है रसधार पिये। -‘अरुण’
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बहुत सुन्दर
ह्रदय को छु लिया
आभार
बेहद उम्दा…..लाजवाब………..
“मेरी इन चन्द लकीरों में,है कालिख का अम्बार पिये”….इस में “इन-चन्द” से गेयता में अड़चन आ रही है मुझे लगता….”हाथों की चन्द लकीरों में है कालिख का अम्बार पिए” देखिये गुनगुना के इसी अरकान में….
जी
अतिशय आभार
Behad sundar rachnaa Arun……
सादर धन्यवाद सर
प्रेम रस से सजी सुंदर कृति……….
सर धन्यवाद
PREM RASH SE SAJATI EK ACHCHHI KRITI…. BAHUT SUNDER.
धन्यवाद सर