समझ गया मैं भली भांति दुनिया के तौर तरीकों कोचोरो का पलड़ा भारी है मिलती राहत न सरीफों कोक्यों दिल लगाने से अक्सर दिल चूर चूर हो जाता हैकैसे कोई कर सकता ये तब ईमान कहां सो जाता हैहसरत प्यार की लेकर जो एक अंजानी राह चल देता हैबीते समय न देर लगी वो दुख फिर हर पल देता हैचाहत में प्रीतम के देखो उसने जो ख्वाबों को बोया थाअब पास नही उसके कुछ भी वो जी भर के अब रोया थाइक पराये को पाने में उसने अपनों का दांव लगाया थाकिस मूर्ख जगत के प्राणी ने दिल मे ये ख्वाब जगाया थादेख ” मनु ” ये दुनिया कैसे दिल का खेल रचाती हैप्यार का भरोसा देकर के मृत्यु की सेज सजाती हैजो सीखी मैंने बात नयी इनकार नही कर सकतामैं चाह कर भी अब किसी से प्यार नही कर सकता कवि – मनुराज वार्ष्णेय
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bahut khoob………….
तहदिल आभार babu cm जी …..
प्रियतम या प्रियतमा से प्यार तो जिन्दगी का एक बहुत छोटा आयाम है| जीवन इससे कहीं बहुत गुणा बड़ा है| बाकी सब तो ठीक है| मैं भाव से सहमत नहीं| माफी|
शुक्ला जी …… भाव इस बात का नही है कि मोहब्बत किससे है …. कृपया आप रचना को दोबारा पड़े तो शायद भावों की गहराई तक पहुच पाएंगे ….. जो कि बताती है कि मोहब्बत के नाम पर अंत मे आखिर मिलता क्या है ….. ये तो एक ऐसा उदाहरण मात्र है जिससे कोई भी भली भांति परिचित होगा ….
बहुत ही सुंदर…….!!
धन्यवाद काजल जी …..
प्यार के मंजिल को छू लेना वश की बात नहीं….. बुजदिल – डरपोक इसे कदापि नहीं पा सकते। विश्वास टूटा कि मंजिल से भटक गये। वक्त – बेवक्त बेवफा हो जाना भरोसे को जरूर तोडती है, पर हालात पर खुद काबू में रहना एक सीख भी देती है। हो सकता है आप उस मजबूरियों से दूर हों, पर उसे समझना जरुरी है।
खैर आपकी रचना और काम मांग रही है। वैसे कुल मिलाकर ठीक है।
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद बिंदवेश्वर जी …..
मैं तो अपने भीतर रहने वाले भावों को ही कलम का सहारा देता हूँ …. जब पथिक मंजिल की ओर बढ़ता है तो उसके मन मे कई बार निराशा आती है …. ये उन्ही में से एक है….
Sundar bhaavaavyakti…….
तहदिल आभार आपका मधुकर जी …..
अति सुंदर ………..!