न जाने क्यूँ….मैं कोशिश कर रहा था…उसकी आँखें पढ़ने की…पर कुछ पढ़ नहीं पाया…चमक में उनकी….लब सिले न थे उसके…पर मैं कुछ सुन न पाया…लरजते लबों की कम्पन…शब्द सुनने की चाह में…आह भरी थी उसने एक…मुझे देखते हुए उसको…अकुलाहट थी या मसोस…बस तय नहीं कर पाया…हाँ ऐसा लगता था कहीं…ठक ठक सी हो रही है…दिल में मेरे ज़ोर ज़ोर से…क्यूँ? समझ नहीं पाया…अब जब सामने नहीं वो…गुमसुम सा लगता है…दिल में….साँसों में….न जाने क्यूँ….\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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ह्रदय की गहराई से निकले सुंदर शब्द…………….. बस इतना कहूंगा ……………क्या यही प्यार है …………हाँ यही प्यार है …………………….हाहाहा हाहाहा …
हाहाहा….मन गदगद हो गया आपकी प्रतिकिर्या से……तहदिल आभार आपका….Nivatiyaji….
मन को छूती…….. सुंदर भाव….. लाजवाब रचना….
तहदिल आभार आपका….Kaajalji….
अद्भुत …….
तहदिल आभार आपका….Manurajji….
भाव विभोर करने वाली प्रस्तुती | बधाई|
तहदिल आभार आपका…..Shuklaji…
बहुत बहुत सुन्दर….. सत्य वचन ।
तहदिल आभार आपका…..Binduji…
Ati sundar a Babbu ji ……
तहदिल आभार आपका….Madhukarji…
Bhavpurn sunder Rachna
तहदिल आभार आपका….Rajeevji….