कोट के क़ाज में फूल लगाने सेकोट सजता हैफूल तो शाख पर ही सजता है,क्यों बो रहे हो राह में कांटेतुम्हें नहीं चलनापीढ़ियाँ पर बढेंगी, इसी राह पर आगे,तुम ख़ूबसूरत हो, मुझे भी दिखे हैख़ूबसूरती के पीछेहै जो छिपा, वो भी दिखे है,मैं न हटाता चाँद सितारों से नजरेंपर क्या करूँधरती से उठती नहीं, अश्क भरी नजरें,मेरे गीत खुशियों से भरे पड़े हैंमेरे साथ सिर्फबुलंद आवाज में उन्हें, तुम्हें गाना होगा,जब भी सख्त हुए पहरे गीतों परगाये लोगों नेइंक़लाब के गीत, और बुलंद आवाज में,रास्ते मुसाफिर को कहीं नहीं ले जातेचलना पड़ता हैकांटों पर, मुसाफिर, मंजिल पाने के लिए,अरुण कान्त शुक्ला, 19/11/2017
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Bahut Sundar rachna, Arun ji…
धन्यवाद अनु जी |
वाह…..सच्चाई….कर्मठता के भावों को ले कर सीख देती बेहद उम्दा रचना……..
धन्यवाद शर्मा जी |
बहुत ही सुंदर…… लाजवाब…..!!
धन्यवाद काजल जी |
बहुत उम्दा …………आपकी लेखनी कमाल की है ………..आपके भावो को नमन ……….गूढ़ता से परिपूर्ण होती है आपकी रचनाये ….
इन पंक्तियों की गहराई अप्रितम है
मैं न हटाता चाँद सितारों से नजरें
पर क्या करूँ
धरती से उठती नहीं, अश्क भरी नजरें,
धन्यवाद, निवातिया जी, आपकी प्रशंसा उत्साहित करती है|
Behtreen rachnaa Arun Ji. Jeevan ki kadvee sachchaaiyon ko kis khoobsoorti se kah daalaa.
धन्यवाद, मधुकर जी |