काली – स्याह सर्द रातों में तन्हाई में लिपटी तेरी यादों सेगुमसुम -सी खामोश खड़ी मैं बातें करती तेरी बातों सेकाली -स्याह सर्द रातों में ,,,,,,,,,बूँद -बूँद है नीर नयन मेंआकुलता है व्याकुल मन मेंतुम दूर गए हो जब से साजन हैं प्राण नहीं अब इस तन मेंएक बार सही पर आ जाओ तुम मिलने मुझसे ख़्वाबों मेंकाली -स्याह सर्द रातों में ,,,,,,,पगली पवन जब छूकर गुजरेरोम – रोम यूँ सिहर उठे ,नीर भरे दो नयन कलशतेरी यादों से यूँ छलक उठे,तेरे प्यार की निर्मल सरिता बह उठती है मेरी आँखों से ,काली -स्याह सर्द रातों में ,,,,,मेरी रातों की खामोशी में दिल का तुम संगीत बनोमत दूर रहो अब मुझसे तुमजीवन की सच्ची प्रीत बनोरोम -रोम में बस जाओ तुम महक उठो मेरी साँसों से काली -स्याह सर्द रातों में तन्हाई में लिपटी तेरी यादों से ,,,।सीमा “अपराजिता “
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Sundar geet likha hai aapne Seema. Bahut khoob……..
Thanku sir …
सुन्दर |
Thanks..
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण लय में पिरोया है रचना को….
Dhanywad apka ..
बहुत ही खूबसूरत……..!!
Thanku kajal ji …
खूबसूरत रचना ……………..!!
Thanku so much sir …