●मन के दरीचों से झांककर देखा जब यादों के तहखाने मेंकिसी बूढ़े दरख्त की सुखी सी टहनी पे झूलते,नजर मुझे मेरा बचपन आया।जहां उड़ते थे कागज के जहाज कभी,वो आसमां आज धुंधला सा नजर आया।।●बना के जज्बा ख्वाहिशों को,मैंने ख्वाबों को सिंदूर सा सजा लिया है।तूफानों का कद अब घटने लगा हैमैंने लहरों को जाम और समंदर को मयखाना बना लिया है।।●चरमराने लगा हूँ किसी पुराने मकान सा,डर है कहीं यादों का खंडहर ना हो जाऊं।।●तुम आग बन जलते रहे और मैं धुएं सा उठता रहा ।हमख्याल होते तो भी कैसेतुम आईना बदलते रहे और मैं नकाब।।● इंसान होके गिरा हूँ इस कदर किकब्रिस्तान में चीखती लाशों का हाल मेरी नीयत की दास्तान कह रहा है।।●.सजा के दुकाँ आवामी हुकूमत की,हम जम्हूरियत को जलील बेहिसाब कर देंगे।तुम ईमाँ की कीमत लगाओ तो सही ,हम रूह का पुर्जा पुर्जा नीलाम कर देंगे।।●आज आँखों को फिर ठगा है,उम्मीदों के जुगनुओं ने।बेआबरू होकर,महफिल में माँस नोंचती ज़िंदा लाशों ने।।●.जज्बातों की अंगीठी जला रात भर रूह को तपाया है।कभी इश्क का जलजला रहा तो कभी फरेब का सिलसिला।।
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bahut sundar….par pahle bhi aapne post ki hai yeh…..aisa lagta…
dhanyawad.. ek do sher sath hi copy ho gye hain
बहुत ही सुंदर रचना…….!!