बचपन से बुढ़ापे तक के सफर में,रिश्तों का तानाबाना बुनते बुनते,हम एक जाल सा बुन तो लेते है,पर ज़िन्दगी के अंतिम पड़ाव में,कुछ, साथ छोड़ चुके होते,कुछ, साथ रहना नहीं चाहते,और बहुत सारे रिश्ते, होते हुए भी,रह जाती, फिर ज़िन्दगी, तन्हा सी,गुजार रहे होते है, बस समय ही,अकेले, अकेले, बस इंतजार में… अनु महेश्वरीचेन्नई
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बहुत ही सुंदर कृति, बचपन से बुढ़ापे तक की माप दंड को आपने रिश्तो मैं आने वाले उतार – चढ़ाव को बखूबी निभायी…. धन्यवाद।
Thank you, Bindeshwar ji…
ज़िन्दगी के सत्य को अवगत कराती…लाजवाब….
Thank You, Sharma ji…
Ati sundar or satyaparak Anu ………………
Thank You,Shishir ji..
वाह अन्नु जी , बहुत सुन्दर |
Thank you, Arun ji…
बहुत ही खूबसूरत……….. अनु जी…..
Thank you, Kajal ji…