*देख विधाता देख!..*(सरसी छंद)कभी-कभी उजले दर्पण में,मूरत दिखती एक।पहचानी सी भाव भंगिमा,सूरत लगती नेक।।चन्दन-चन्दन लगती काया,कर्मठता के हाथ।पावन स्निग्ध चरण हैं उसके,ममता उसके साथ।।उसका उजला-उजला आँचल,परियों जैसी शान।अमृत घोली उसकी बोली,मिसरी सी मुस्कान।।एक बार सपने में मुझको,घेर चुकी थी आग।भय के मारे हाल बुरा था,गया अचानक जाग।।ढांढ़स की वो तेरी थपकी,आह!वो तेरा नेह!रोम रोम तेरे ऋण में है,उऋण नहीं ये देह।।तिनका तिनका जोड़ा जिसने,रक्त अंश के पोष|जूठन खा जिसकी आँखों में,देखा मैंने तोष।।तुझको खो देने पर अब है,सूना ये संसार।तेरी माटी के कण-कण में,सौ जन्मों का प्यार।।मन का दर्पण माँ की मूरत,ममता का ये लेख।तुझसे बढ़कर माँ की सूरत, देख विधाता देख।। -‘अरुण’
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बहुत ही सुंदर तिवारी जी आप ने ममता के स्नेह को जागृत किया। मां के प्यार को जताते हुए पूजा की तरह विधाता की दर्जा दी बहुत बहुत धन्यवाद।
समवर्ती भावों को पुष्ट करने के लिए आपको नमन
माँ को आपने जो श्रद्धा सुमन अर्पण किये हैं…उसकी सुगंध कभी न ख़त्म होने वाली सुगंध है जो हर पल महकाती रहेगी पढ़ने वालों के मन को भी….और माँ के लिए जितना भी कहा जाए वो अप्राप्य ही रहता है… सृष्टि का दूसरा नाम माँ है…आपके भावों को…मेरा नमन…आपके सरसी छंद के पुष्पों में जो सरसता है…निर्मलता है….वो यूं ही बनी रहे…ऐसी दुआ करता हूँ….मैंने भी कोशिश की है माँ के ऊपर कुछ छंद लिखे हैं..कविता कही हैं….वक़्त लगे तो नज़र करियेगा….बधाई आपको बहुत बहुत…
Behad sundar rachnaa ……………………
बहुत ही सुन्दर अरुण भाई |
Bahut hi sundar rachna….
बहुत ही बढ़िया……. लाजवाब…..!!