जब जीवन की जीवनी मे, जब मैने ईमानदारी का चुनाव किया ।शुभेच्छुओं का लगता रहा तांता, सबने एक सा मशवरा दिया ।।1 ।।इस राह मे ‘मित्र’ दोस्त कम, दुश्मन होते हैं तमाम ।जब आता वक्त परीक्षा का, कोई नहीं आता है काम ।।2 ।।शुभचिंतकों का कर धन्यवाद, राह मैंने आप चुनी ।जीवन की कथा लिखने को, अनुभवों की डोर स्वयं बुनी ।।3 ।।संघर्षों में बीता बचपन, मित्रों ने दिया ‘हरिश्चंद्र’ का नाम दिया ।किसी ने कहा ‘भगत’ मुझको, तो किसी ने ‘दृढ़प्रतिज्ञ’कह नमन किया ।।4 ।।वयंग्य मे पाई उपाधियों के, बीच था यह बचपन बीता ।अपने चुनाव से था संतुष्ट, कहीं भी कुछ ना था रीता ।।5 ।।जीवन की वास्तविक परीक्षा से, जब जीवन दो-चार हुआ ।ऐसा लगा परिस्थतियों के आगे, ज्यों जीवन लाचार हुआ ।। 6 ।।मंझधार में पहुंची जब नैय्या, अग्नि परीक्षा की हुई प्रबल ।निष्ठुर समाज से मिले ताने, विपरीत परिस्थितियों ने तोड़ा अन्तर्बल ।। 7 ।।कोई कहता ‘ढ़ोगी’ मुझको, कोई कहता रहा ‘घूसखोर’ ।कोई कहता रहा ‘बहुरूपिया’, कोई कहता ‘सयाना चोर’ ।। 8 ।।दुनियाँ के ताने सुन-सुन कर भी, मन का ना साहस छूटा ।निर्बाध चलाया जीवन को, अन्तर से था ना मैं टूटा ।। 9 ।।पर मानव की भी सहन शक्ति, साथ कहाँ तक दे सकती ।संसार भले ही करे उपेक्षित, उपेक्षा ना अपनों की सहन होती ।। 10 ।।रिश्वतखोरों का कर गुणगान, अपनों ने दिये मुझको ताने ।ईमान की गठरी रख कंधे पर, चले थे अपना भाग्य बनाने ।। 11 ।।लोगों ने तुमसे छोटे पद पर रहकर, सारे सुख साधन प्राप्त किये ।ईमान टांग कर कंधे पर, तुम हो परिवार को आप्त किये ।। 12 ।।जब अपनों ने तानी भृकुटी, ‘ईमान’ को मेरे कहा ढोंग ।भीतर से था मैं टूट गया, क्या अर्थ है जीवन का उपभोग ।।13 ।।ईमान के मूल्य नहीं होते, परिजनों को मैं न समझा पाया ।थक हार कर आखिर मैंने, समझौते का मार्ग था अपनाया ।। 14 ।।परिजनों ने नाता तोड़ मुझे, अकेला मंझधार में छोड़ दिया ।ईमान की थाती संजो के मैंने भी, अपनों से था मुख मोड़ लिया ।। 15 ।।अवकाश प्राप्ति को हुए बरस पाँच, ढ़लती आयु ने था डाला डेरा ।सुबह शाम की सैर करते, चलने लगा जीवन मेरा ।। 16 ।।जीवन संगिनी को लिए संग, सरिता तट पर करता सैर ।अपनी कमाई पूंजी से हो संतुष्ट, त्यागा मैंने सबसे बैर ।। 17 ।।मन में आता था विचार, परीक्षा की अवधि कितनी लंबी होगी ।ईमान की कदर कर सकें जो, उनकी संख्या इतनी कम होगी ।।18।।मन ने फिर यह समझाया, इस पथ के तुम ही मात्र नहीं पथिक ।अनगिनत जन मिल जाएंगे, जो दे चुके परीक्षा कहीं अधिक ।। 19 ।।आखिर परीक्षा हुई पूर्ण, बेटे ने आकर पकड़ी बाँह ।बोला ईमान की गहराई की, मिली अब जाकर मुझको थाह ।।20 ।।आपकी राह पर चलूंगा मैं, ईमान ही होगा मेरा धर्म ।परीक्षा में आप उत्तीर्ण हुए, मैंने पाया आपका मर्म ।। 21 ।।
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bahut sundar kataaksh……………
Behad khoobsoorsat aatmabhivyakti or samaaj ke dohre charitr par sateek chot.
आप सभी प्रशंसकों का बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुन्दर …………………….
काव्य में आत्मकथा का पठन पहली बार कर रहा हूँ| संक्षिप्त और एक विषय केन्द्रित
, पर , कहने का अंदाज खूबसूरत और उम्दा| बहुत बधाई |
ह्रदय के भावो को अभिव्यक्त करने का अनूठा अंदाज़ ……………उत्तम सृजन !