भले ही घाव भर जाएं निशां तो फिर भी रहते हैं मुहब्बत के गमों को आज हम तन्हा ही सहते हैंवो पत्थर हैं ज़माने से कभी कुछ भी नहीं बोला मगर हम उनसे लिपटे आज भी झरने से बहते हैंबड़ी चिंता है दुनिया को कहीं वो बात ना कर लें तभी जज्बात मन के आज वो नज़रों से कहते हैं कटेगी ज़िन्दगी खुशहाल हो बस साथ में उनकेमहल पर अपने ख्वाबों के निरी रेती से ढहते हैंइतनी खुदगर्ज है दुनिया बदलते वक्त में मधुकरकफ़न खुद की मय्यत का हम खुद ही से तहते हैंशिशिर मधुकर
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Bahut hi sundar rachna, Shishir ji…
Tahe dil se shukriya Anu………..
Very nice beautiful thoughts.
Haardik abhaar Bindu Ji ………….
बेहतरीन………..”सभी जज्बात मन के आज वो नज़रों से कहते हैं” ये अगर ऐसे हो तो कैसे लगता वहां….”तभी जज्बात मन के वो सदा नज़रों से कहते हैं”…और मुझे लगता “महल पर अपने खवाबों के” होना चाहये…
Tahe dil se shukriya Babbu Ji. Aapke sujhaavon ko maine sammilit kiyaa hai jinse rachnaa vaastav me aur sundar ho gai hai. Main aapki inputs ki bahut kadr kartaa hun or bade garv se kahtaa hun ki aapke sahyog ne saidaiv kuch seekhne kaa maukaa diyaa.
आपकी ह्रदय विशालता का तहदिल से स्वागत करता हूँ…आभार आपका…
बहुत ही सुंदर रचना है आपकी ……………………..गजब….
Tahe dil se shukriya aadarneey Madhu Ji …………..
सुन्दर मधुकर जी |
Bahut bahut dhanyavaad Arun Ji…………..
बहुत बढ़िया …………………कमाल है !
Tahe dil se shukriya NIvatiya Ji …………………..
बहुत ही खूबसूरत….. लाजवाब रचना…. मधुकर जी….!!
Tahe dil se shukriya Kajal…….