प्यार के जाल में फँसकर हम रह गएजो सुनते न सुनाते वो बात कह गएहम तो संभले थे एक लंबे अरसे के बादपर तेरी हवाओं में हम फिर से बह गएक्या अजब ही कयामत सी आयी है तूशैल अरमानों के मेरे खड़े ढह गएक्या गजब वो घड़ी थी जब तुमसे मिलेदुनिया आगे निकल गयी हम वही रह गएहँसता चेहरा ही दिखता न दिखती रंजिशेंतेरे हर एक जुल्म को जो हँस के सह गएहम मिला करते थे तुमसे जिस मोड़ परक्यों बैठे है यहां अब भी रास्ते ये कह गएआज तन्हाई भी मुझसे पूछे यहीइतनी जल्दी क्यों तन्हाइयों में हम रह गए कवि – मनुराज वार्ष्णेय
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bhut khoobsurat gazal manuraj ……… ..meri kavita …..manvta ka path bhi padhe aur apna amulya comment de.
धन्यवाद मधु जी …………
मैं आपकी रचना पर प्रतिक्रिया अवश्य करता ……
परन्तु किसी कारणवश comment नही हो पा रही है ….
यदि आपके पास इसका कोई उपाय हो तो मैं आपका आभारी रहूँगा …..
बहुत खूबसूरत….
धन्यवाद बिंदेश्वर जी ……
अति सुंदर…………
धन्यवाद babu cm जी …….
सुन्दर..
बढ़िया ..
धन्यवाद अरुण जी ……
बहुत खूबसूरत…….!
धन्यवाद निवातिया जी ………..