“रफ्तार का नाम सफर है,धूप से तपती एक डगर है.थक कर बैठें प्लेटफॉर्म के नीचे,सूकून पा लें आँखें मीचें.अब वो प्यारे जगहा किधर हैं?लौटकर आ जा लोहे वाले ‘शेड’ इधर हैं!!दोपहर के 3,बज रहे है मै भीलवाड़ा से मध्यप्रदेश के रतलाम जक्शंन से पनवेल स्टेशनमुम्बई के लिए रवाना हुआ सच मे मुम्बई की यात्रा तो ‘अवर्णनीय’ होती है. अब भला कोई अपने शब्दों से,आपाधापी से लगे झटकों का अहसास कैसे करा सकता है?? यात्रा, पर्यटन के उद्देश्य से नही थी बल्कि व्यापारिक कामकाज के लिए अत: जो मैने देखा वो बस लोग और लोग ही लोग थे!“राहगीर यात्रियों से मुलाकातें थीं,कुछ यहाँ वहाँ की बातें थीं,दौड-भाग मे दिन गुजरे,और थकी-थकी सी रातें थीं!”राजस्थान मे लोगों की जिन्दगी की रफ्तार बहुत धीमी, ठीक वैसे जैसे“आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों,इतनी जल्दी क्या करता है,जब जीना है बरसों!!”लेकिन मुम्बई मे लोगों की बेतहाशा तेज रफ्तार को देखकर लगा कि ये लोग उसी कबीर के दोहे के अनुसार जीवन जीते हैं–“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब,पल मे प्रलय होयेगा, बहुरि करेगा कब!”मुम्बई मे ‘लोकल ट्रेन’ के प्लेटफार्म पर खडे-खडे ये पन्क्तियाँ आपके लिए——प्लेटफार्म पर छोड दो अकड़ये लोकल ट्रेन डिब्बे का सफरखाली जेब हो या हो पैसा,सब है एक दूसरे जैसा. आपस मे एक दूजे से सटे तीन की सीट पर पाँच डटे भांति भांति की लजीज व्यंजन ,कुल्फी कचोड़ी रेवड़ी के कचरे,छिलके की बिखरन.कैसा सुख? कहाँ की सुविधा?काहे का सफर ? बस दुविधाइस हालत पर ट्रेन रोतीखुद से तिगुने भार को ढोती.लोग भागते खाते धक्काआम आदमी लगता यहां का पक्का,उसका सफर है बस एक धक्काएक धक्के से अन्दर चढना,एक धक्के से बाहर आना.कहाँ की मन्जिल? कहाँ ठिकाना,काम है बस एक चलते जाना!!!मुम्बई के शुरुआती सफर में , आज के लिये बस इतना ही…सच ही है दुनिया मेआना जाना एक खबर ही तो है,जिन्दगी भी एक सफर ही तो है………कपिल जैन
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bhut badhiya rachana …..safr ka annd dila rahi hai….. meri rachana bhi adhen
manvta ka path kavita bhi padhe….
अति सुंदर …….…विषय बहुत खूबसूरत है। भावाभिव्यक्ति भी अच्छी है। …………तालमेल और बेहतर कर सकते थे।