आजकल मैं मन का करता हूँ।
चुपचाप दिल में झाकां करता हु
नजरे चुराता हुं और रूह को
गुलजार की नज़्मों से सेंकता हूँ।
हर सुबह तुम्हे भीगे बालों को संवारता देखता हु
इत्मीनान से मुस्कुराता हूँ
बेजुबां चुप्पी सेएक कोफी प्याली से
कभी तिरछी नजरों सेहोठ कुतरता हूँ।
अपनी खिड़की से
तुम्हारी मुस्कान को ,ख्वाहिशों से सींचता हूँ।
मुट्ठीभर यादों को समेटता
दोस्तों की बातों से लिपटता हूँ।
आजकल मैं मन का करता हूँ।
शाम को -आवारगी से घूमते हुए
,पेड़ों की डाली पर ,चिड़ियों का कलरव सुनता हूँ।
ओर बचे – खुचे पेड़ों पर
आ कही नीड़ बना ले हम
ऎसी कोशिश में शामिल होता हूँ।
अपने दिल की मिटटी को
दूर से ही सहलाता हूँ
मेरे दोस्त कहते हैं
आजकल मैं कुछ नहीं करता
क्योंकि -आजकल मैं मन का करता हूँ।
फूल चुनता हुं ,बारीशों में भीगता हुं
,खुश्बू सा महकता हुं
अनजान रास्तों पे अजनबी संग घूमता हुं,
दरिया किनारे रेत पर चलता हवा के गीत सुनता हुं
पहली पहली कोहरे की ओस में,
ऊन के गोले बुनता हुं
अच्छा लगता है जब
तुझे तिरछी नजरो से देखता हुं
सुनहरी मुस्कान लेने के लिए,
तेरे ख़्वाब बुनता हुं
आजकल मैं मन का करता हूँ
कपिल जैन
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bhut khoob likhe hai aap……………. meri kavita manvta ka path …bhi ppadhe aur amulya comment de.
सूंदर………….
अति सुंदर …….शब्द अशुद्धियों पर गौर करे ।