कभी दिल थाअब नहीं रहा,बाइपास हो गया,भाव-अभाव खत्म हो गए।डल गया प्रैक्टिकल स्टंट,नहीं महसूस होता कुछ भी,एक लड़का रहा करता था सक के उस पार,क्रता इंतज़ार पहल दुपहरे,अब वहां नहीं रहता।एक भिखारी रोज मिला करता था,वहां जहां लोग होते,दुआएं दिया करता था,अब वह नहीं रहता वहां।एक चिट्ठी लिखी जाती थी,रात बिरात उठ कर,अब चिटठी का सिलसिला भी उठा रहा गया,नहीं रहा वो पताजहां पोस्ट करने के लिए भागा करता था डाकघर।एक आवाज़ थाहमेशा पुकारा करती थी,अब उस आवाज़ में खनक नहीं रही,ख़ामोश पुकार गले में घू घू करती,दूर चली गई।एक आदमी था,ठीक चौराहे के पास तीसरी गली के चौथे मकान मेंअब वो वहां नहीं रहता,सुना है,किराए नहीं दे पाता था,निकाल दिया गया।कभी बेरोजगारी में था वहांबेरोजगारी लंबी खींची,खींच गई दूरियां बाप के दिल में।एक कवि हुआ करता था,अब वो कविताएं नहीं करता,लोगों ने खूब खरी खोटी सुनाई,कमाई ढले कीकरोगी कविताई,अब वो कवि नहीं रहा।एक बात पसरी थीदोनों के बीच-भाव की परतें भी खुलींकरीब भी हुए,लेकिन अब वो न बात रही और न भाव उनके बीच।
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अति सुंदर ……………मन की व्यथा को रचनात्मकता प्रदान करने में अभाव नजर आता है ……………अधिक शब्द अशुद्धियाँ और गेयता में कमी साफ़ झलकती है . पुन: अवलोकन करे !
मन के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है, कौशलेन्द्र जी।
शब्दों में त्रुटियां नहीं होगी तो रचना और सुन्दर बन सकेगी।
भावों की अधिकता से बेतरतीबी आई है| रचना सुन्दर है| टाईपिंग की भी गलती हैं| ध्यान रखेंगे तो अधिक अच्छी बन पड़ेगी|
bhav achha hai ……………………….tartamya ka dyan rkhe…….manvta ka path ….meri rachana bhi padhe.
madhu ji aap sab ke sujhavo par dhyaan rakhunga. Shukrgujar hun.