जब शहर कि रौनक को गाँव की खिड़की से देखता हूँ,एक बूढी औरत मेरे उतारे हुए पुराने दिन पहनकर अपना हर रोज़ काट रही है। nitesh banafer (kumar aditya).
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behad umda………
dhanyawad sir
अति सुंदर ………………!
जब शेहर की रौनक में गाँव की खिड़की से देखता हूँ, ………..इस पंक्ति में शायद कुछ ऐसा कहना चाह रहे है …….या ऐसा करके देखे भाव स्पष्टता उभर कर आएगी !
“जब शहर की रौनक, मैं गाँव की खिड़की से देखता हूँ,” या फिर “जब शहर की रौनक को, गाँव की खिड़की से देखता हूँ,
bilkul sahi kaha aapne.dhanyawaad
निवातिया जी की सलाह पर ध्यान दें |
ji bilkul sir
bhav achha hai……….. nivatiya ji ki salah uchit hai……..
ji maine unki salaah maan li.dhanyawad