कुछ साल और निकले में पढता रहा सब मुझे पढ़ाते रहेआ गया वो दिन जिस दिन होना था माँ से दूरसब छोड़ गये अकेले कोई नही था मेरे पासअकेले ही लड़ना था दुनिया सेनिकल पड़ा लड़ने दुनिया सेअब में खुद निर्णय लेने लगा दिल सेकुछ दुनिया से सिखाकुछ दुनिया को सिखायाकई गम सहे कई गम पियेकुछ दिन अपने ही घर में टिफिन भी खायाकुछ दिन अपने देश में भी होटल पे खायाजिन्दगी में गमो ने जेसे घर ही बना लिया थारोता अकेले में पर कोई आंसू पोछने वाला ना थाऊधार जेसे मेरे सर पे हो दुनिया का ऐसा लगने लगा थाधीरे धीरे वो दिन भी निकलेवो तो करम थे मेरे पिछलेहर गम मुझे कुछ ना कुछ सिखा के गयाहर गम मुझे एक सीडी ऊपर चढ़ा के गयावो गम ना होते आज में ऐसा ना होताना में कुछ बन पाता ना कुछ मुझे मिल पातागमो ने नोकरी करना भी सिखाया3 महीने फ्री फिर 600 फिर 6 महीने 1200 में किया मेने कामफिर उदयपुर आके मेने किया अपना नामकाम और पढाई दोनों किया मेने साथ -साथऔर परीक्षा से भी किये मेने दो -दो हाथपर गम तो हमेशा साथ ही रहाधीरे धीरे गम ने लिखना सिखायाजिसको समझाना था उसको कुछ समझा ना पायालिखता रहा दिल से अपने अरमानो कोउतारता रहा कागजो पे अपने जख्मो कोहँसकर निकालता रहा अपने गमो को”मेरी जिन्दगी एक कहानी हेमें उसका वो मेरी दीवानी हेकेसे करू साकार मेरा हर एक सपनाबस छोटी सी मेरी जिंदगानी हे “बस इसी तरह जी रहा अपनी जिन्दगी कोलेखक – चन्दन राठौड़(http://m.facebook.com/rathoreorg20)12:02 amTue 20-11-2012
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आप अपनी रचना को फिर से पढ़िए….बहुत कुछ ऐसा है जो अगर न हो तो रचना सुन्दर लगेगी “जैसे….कुछ दिन अपने ही घर में टिफिन भी खाया…कुछ दिन अपने देश में भी होटल पे खाया” इसमें क्या बुरा है होटल में तो…आप किसी और ढंग से इसको बोल सकते हो…या छोड़ सकते हो…ऐसे ही और बहुत जगह है…. ज़िन्दगी के अनुभव हैं…हर किसी के साथ हर पल उसकी इच्छा की तरह नहीं गुजरता… खट्टे…मीठे…कुछ तीखे बहुत से….सब अनुभव हैं…उसको बाँटिये ज़रूर पर लिख कर आप अवलोकन करेंगे खुद ही पाएंगे की बहुत कुछ ऐसा है जो छोड़ा जा सकता है…बदला जा सकता है… पढ़ने के लिए उसमें निरंतरता आ सकती है…. उम्मीद है आप मेरी बातों का बुरा नहीं लेंगे….