Homeअज्ञेयमैं कवि हूँ मैं कवि हूँ अनिल जनविजय अज्ञेय 13/02/2012 No Comments मैं कवि हूँ दृष्टा, उन्मेष्टा, संधाता, अर्थवाह, मैं कृतव्यय । मैं सच लिखता हूँ : लिख-लिख कर सब झूठा करता जाता हूँ । तू काव्य : सदा-वेष्टित यथार्थ चिर-तनित, भारहीन, गुरु, अव्यय । तू छलता है पर हर छल में तू और विशद, अभ्रान्त, अनूठा होता जाता है । Tweet Pin It Related Posts हम कृती नहीं हैं उसी एकांत में घर दो असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 1 About The Author अनिल जनविजय कविता का पाठक हूँ और दूसरी भाषाओं की कविता का अनुवाद करता हूँ। Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.