कौन कहता है मैं कवि हूँ कभी था आज आदमी हूँ। जी तोड़ मेहनत की थी बहुत कुछ सीखा था बहुत कुछ परखी भी थी कवि बनने के लिए अपनी सोच तक बदली थी पर कवि नहीं बन पाया खुदा खैर करे आज आदमी हूँ जिंदा लाश की तरह जीना कोई जीना नहीं कवि के सारे गुण मेरे अंदर साक्षात है देखने पर पता नहीं चलता चलती है तो वह मेरी कलम जो अपने आप गढ़ लेती है कविता – गजल – नज्में – गीत अपने आप मन बोलता है कलम दौड़ पडती है कभी रुक – रुक कर चलती थी तब मैं कवि था आज आदमी हूँ। पता नहीं बिन लगाम घोड़े की तरह रफ्तार पकड़ लेती है मेरी जुबान नहीं चलती पर खूब दौड़ लेता हूँ किसी चीज को जल्दी पकड़ लेता हूँ कौन कहता है मैं कवि हूं कभी था आज आदमी हूँ।
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bhut badhiya bindeswr ji…………………….
जद्दोजहद भरी ज़िन्दगी में कहने को बहुत कूच होता है आपने सही कहा है
सुन्दर कटाक्ष………..
मन की उधेडबुन को सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है, बिन्दुजी ।
जिसे ओढ़ता,पहनता,खाता,पीता,जीता हूँ
वही सब कुछ तुम्हें सुनाता हूँ,
तुम इसे कविता कहते हो
तो मैं कवि हूँ|
सुन्दर लिखा आपने|
अप्रितम बिंदु जी…………..जब कवि था किसी ने न जाना ……आज आदमी हूँ तो जानने लगे है लोग ……….क्या सटीक बात कही आपने ……….
Bahut Sundar….