चला गया वो अब नहीं आएगा,एक हवा का झौंका था शायद,अब कहीं दूर समा जाएगा।हम 15 साल 15 महीने और 15 दिन साथ रहे,हम 15 साल 15 महीने और 15 दिन तैयार रहे।हमने उठना सीखा हमने गिरना सीखा,हमने चलना सीखा हमने दौड़ना सीखा,हमने भागना सीखा हमने मचलना सीखा,हमने तरसना सीखा हमे तड़पना सीखाहमने रूठना भी सीखा हमने मान जाना भी सीखाहमने रात के अंधेरों से खुद को आज़माना भी सीखा।हमने हवाओं को आराम फरमाते देखा,हमने पेड़ो को राग गुनगुनाते देखा,हमने इधर भी देखा हमने उधर भी देखाहमने जिधर भी देखा बस उधर ही देखा,अब ये ना पूछो हमने क्या क्या देखा।हमने पतंग उड़ाई और अपनी मुंडी हिाईउड़ चली तो शाबाशी,और कटी पतंग े करी लड़ाई।हमने गुर्राते पिल्लों की भी कर दी सगाईटिन डिब्बों के बाजे बजे और खूब की नचाई।हमने एक नया एक्सपेरिमेंट आज़माया,और चिड्डे को इंजेक्शन लगाकर खूब उड़ाया,और जब-जब सर्दी खांसी का भूत आयाहमने भी कई बार हॉस्पिटल का चक्कर लगाया।हमने चिड़ियों के बच्चों की कुं कुं सुनीहमने चूहों की अथलंगी चूँ चूँ भी सुनी।हमने सूरज की तपीश का खूब लुत्फ़ उठायातो बर्फ पिघलाकर ानी से उसका मुकद्दर भी कराया।हमने कभी सरगम की तार भी तोड़ीतो कभी राग “गुस्से” से कई गर्दन भी मरोड़ी।हम फंसे भी थे हम खोये भी थेहम हंसे भी थे तो हम रोये भी थे।हमने माँ की मार से युद्ध कियातो वही बाबा की साइकिल चलाकर खुद को अभिभूत किया।हमने बस “घर “को ही दुनिया बनााबाहर क्या है ये ना जाना और ना आजमाया।हम बर्थडे मनाते थे और केक भी काटते थेगुब्बारों को फुला फुला कर दीवारों पे लटकाते थेहमें गिफ्ट भी मिलते थे,पेन-ंसिल,कार यहाँ सब ही चलते थे,और अपने ही बर्थडे पर हैप्पी बर्थडे टू युयुयुयु गाते थे।हमने सिसकियाँ भी भरीं,हमने आँसुओ को भी रुलाया हैहमने मंज़िलो को कभी रास्ता भी दिखलाया है।हमने कई दीवाी ऐसे भी मनाईंदिये जलाईं और बस दिये ही जलाईंहमने कई दीवाली वैसे भी मनाईंमिठाईयां खाईं और फटाके भी जलाईं।हमने होली मनाई और रंगो से अपनी पहचान करायी,हमने प्यार जताये और यारों के यार कहलाये।हमने चंदे भी लिए और गणेश भी बैठायाहमने नए साल का जशन मनाया और खूब माहौल बनाया।हम उलटे भी थे हम सीधे भी थेहम टेढ़े भी थे हम मेढ़े भी थेहम ऐसे भी थे हम वैसे भी थेना जाने हम कैसे-कैसे थे।हम छत पर भी चढ़ जाते थेऔर एंटीना को हिलाते थे,”आया क्या-आया क्या” ऊपर से चिल्लाकरनानी की चिठ्ठी को नहींबल्कि ब्लैक एंड वाइट टीवी के उस सिग्नल को बनाते थे।नानी की चिट्ठियों से याद आयाजब आता तो दोनों बड़े चाव से पढ़ते थे,और “मम्मी बहुत मारती है” ये लिखकर जवाब भी तुरंत भेजते थे।हमने “बादलों” पे गहरा शोध् कियाऔर उन्हें हाथी, घोड़े, धनुष, त्रिशूल पता नहीं किस किस का रूप दिया।आज पता नहीं सुबह हो गयी,पर वो न आयाजब आँख खुली तो मैंने खुद को अकेला पाया,अब कैसे करूँ इंतजार उस मासूम से मेरे “बचपन” का,सब कहते यही,वो छुटा बचपन अब वक़्त है तो बस बड़ा बन जाने का।चला गया वो अब नहीं आएगाएक हवा का झौंका था शायद,अब कहीं दूर समा जाएगा।नितेश बनाफर (कुमार आदित्य)
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bhut marmik rachana lgi mujhe……..bhut khoobsurat dhng se likha hai apne……
shukriya madhu ji
S
Aapki rachnao ka bi jawab nahi.
बचपन कि यादों का सुन्दर ताना बाना.आज के अकेलेपन को भी उद्घाटित करती अच्छी रचना.
Shukriya
Aapke rachnao se thoda bahut sikh rahe hain.
मिली जुली स्थिति बचपन को याद करती बिलकुल ताजी आत्म मंथन।
Dhanyawad sharma ji
Atma manthan hi hame apne aap se milati hai
bahut khoob……………
Ji aapke bataye huye raaste par chalne ki thodi koshish ki hai.dhanyawad
मन के भावों की अच्छी अभिव्यक्ति है।
Dhnyawaad adarniya…
Aapke lekho ka bhi jawaab nahi
जिंदगी की जद्दोजहद से परे बचपन के निश्छल प्रेम की अनुभूति को जीवट करती सुंदर अभिव्यक्ति !
Shukriya nivatiya ji.
Ye hamara bachpan hi hai,jo hamare ander prem ki bhawana jagati hai.
Aap jaise rachnakaro se hame bht kuch sikhne ko milta hai
Aaplogo ka support hi hame prerit karta hai.