तन्हा
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बड़ी तन्हा गुज़री है ये जिंदगी तेरे बिन खुशहाल तू भी नहीं रहा कभी मेरे बिन !एक दूजे कि आरज़ू में गुज़री उम्र तमाम तजवीज़ बहुत की मिल न सके डेरे बिन !!
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डी के निवातिया
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bhut sundar sir……… gudh bhav se purn hai ye panktiya apki…………..
तहदिल से शुक्रिया आपका …………………….MADHU JI.
नमस्कार निवातिया जी…..
बहुत ही सुंदर….. लाजवाब रचना…….!!
तहदिल से शुक्रिया आपका ……………………KAJAL काफी आरसे बाद प्रतिक्रिया मिली बहुत अच्छा लगा ……….आजकल आपकी रचनाये पढ़ने को नहीं मिल रही साहित्य पटल पर ………!!
Nice………Nivatiyan JI
तहदिल से शुक्रिया आपका ……………………KIRAN JI.
Ghoodtaa bhi hai, dere ke maadhyam se sarcasm bhi hai .lekin aapkaa main aashay kyaa hai …….
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी ………अब आपने गूढ़ता और कटाक्ष दोनों ढूंढ ही लिए है तो फिर आशय की शंका कहा रह जाती है ….हा हा हा…………….!
आप किसी भी परिपेक्ष्य में ले ले रचना का मूल आशय अकेलेपन से ही है…….. इंसान जीवन में कितना भी कुछ पा ले लेकिन तब तक तन्हा ही रहता है जब तक आत्म संतुष्टि न हो ……….और आत्म संतुष्टि मानव जीवन में तो कही मिलती दिखती नजर नहीं आती ……….और हजारो सैकड़ो में किसी ने पा भी ली………. तो वो फिर सामान्य इंसान नहीं रह जाता ! आशा करता हूँ अपने भावो को स्पष्ट करने के कुछ हद तक सफल हो सका हूँ ! ………….पुन: दृदय से धन्यवाद आपका !
हाहाहा कमाल तो आप करते ही हैं….कटाक्ष करने की गहराई भी है….स्पष्ट उभर के आये वो नहीं लग रहा….
तहदिल से शुक्रिया आपका बब्बू जी ……आप गुणी है ……..कभी कभी उलझन भी आवश्यक है ………….सब कुछ सामने आ जाये तो फिर बाकी रह ही क्या जाता है …………हा हा हा ……….आपके मंतव्य पर खरा उतरने के अवश्य कोशिश करूंगा ……पुन : धन्यवाद आपका .!!
इंसान जीवन में कितना भी कुछ पा ले लेकिन तब तक तन्हा ही रहता है जब तक आत्म संतुष्टि न हो ……….और आत्म संतुष्टि मानव जीवन में तो कही मिलती दिखती नजर नहीं आती ……….और हजारो सैकड़ो में किसी ने पा भी ली………. तो वो फिर सामान्य इंसान नहीं रह जाता ! आशा करता हूँ अपने भावो को स्पष्ट करने के कुछ हद तक सफल हो सका हूँ ! ………….पुन: दृदय से धन्यवाद आपका !
शानदार लेखन निवातिया जी
उत्साहवर्धन करती अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका राम गोपाल जी
एक शहर हो अपना, शहर में एक घर हो अपना, तो जीवन में सब कुछ, सुहाना लगता है,
रचना के भावो को मान देने के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका शुक्ला जी !
आशाओ और उमीदो के सहारे ही जीवन यात्रा पूर्ण हो जाती अंतत: सव्य को तन्हा ही पाता है ……………….अरुण जी !
लाजवाब सदैव की भांति ….,आप की लेखन शैली का कोई जवाब नही .
रचना के भावो को मान देने के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका मीना जी ………आजकल साहित्य पटल पर आप नजर नहीं आ रही है ………..!
भावभीनी अविव्यक्ति सुंदर.
रचना के भावो को मान देने के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका बिंदु जी !