वो रस्ता है जो हस्ता है,हर पल मुझसे ये कहता है,आ बैठ ज़रा और देख ये धरा,मन के रंज मिटा दे ज़रा।इनसे निकलती कई गलियां हैंजिनमे खिलती कई कलियाँ हैं,उन कलियों की कई खुशियाँ हैं,उन खुशियों से एक दुनिया है,खुशबु बिखेरती रंग निहारतीं,हरपल सबको पास बुलातीं,कभी हसातीं कभी रुलातीं,और जीने का मान सिखलातीं।ये गलियां हैं जो संकरी हैं,ये खुद ही खुद में जकड़ी हैं,न बैर रखे न मोह इसे,ये बंद दरवाज़े की खिड़की है।दूर तलक जब चलीं ये गलियां,पाँव पसारे खाती अटखेलियां,जबतक कुछ अर्ज़ करे ये गलियां,चौराहे आते ही बन जाती पहेलियाँ।इन गलियों में कई साँसें बंद हैं,और कहीं कोई आँखें नाम हैं,गलियों को मंजिल का दम है,फिर भी गलियां लगती भ्रम हैं।आज एक गली है संग चली,कल दूजे ने हाथ थम ली,यही सफ़र बस चलता है,जब तक तू इनमे बस्ता है,सुबह करेंगी शोर ये गलियां,और रात में बन जातीं सुनी सहेलियां।इन गलियों में सावन भी आता,और भीगी साँसों से पतवार चलाता,शीत की ठिठूरन राग सुनाता,और उष्म की तपन कहीं छिप सा जाता,इन गलियों में रंगो का अंग है,कुछ और नहीं बस बढ़ता क्रम है।इन गलियों में एक खज़ाना है,जिसे सभी ने न पेहचाना है,न रत्न जड़े न स्वर्ण खिले ,वो तो बस एक गुज़रा ज़माना है।Kumar aditya( nitesh banafer)
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सुन्दर भावाभिव्यक्ति ………….. ….टंकण अशुद्धियों पर ध्यान दे …..प्रकाशित करने से पूर्व एक बार अवलोकन करे तो टंकण त्रुटियों से बचा जा सकता है ………!!
Agli baar se bilkul dhyaan diya jaega sir
बहुत ही सुंदर रचना………!!
Dhanyawaad kajal ji
sundar…………….
dhanyawad sir
टाइपिंग की गलतियों के अलावा ”गलियां” अच्छी अभिव्यक्ति है।
dhanyawad mahoday…