जब भी मिलो तुम, मुस्कुरा के बोलना….अपनी हकीकत को, छुपा के बोलना….आईने को झूट कहने से पहले तुम…नज़र अपनी खुद से, मिला के बोलना…अपनी अना ही, ले डूबी थी रहनुमा…शुरू हुआ जो नभ पे, थूक उड़ा के बोलना…तासीर इश्क़ अब, समझ आयी है मुझे…चुपके से रोना, गम छुपा के बोलना….नाज़ुक बहुत हैं, इश्क़ के धागे ‘चँदर’…छोड़ तिजारत, ईमाँ निभा के बोलना….\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)अना – मैं मैं करना, ईगोतिजारत – व्यापार, धंधा
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behad sundar babbu Ji ………..Ana se aapkaa yahan kyaa abhipraay hai kripya spast karen ………….
तहदिल आभार आपका….अना से मतलब यहाँ अपना ही गुणगान करना है….या अपने को ही सबसे ऊपर समझना…जैसे खुदा बन बैठना किसी का…आप घमंड भी ले सकते इसको…ईगो ले सकते इसको…
बहुत ही सुन्दर गजल लिखा है सर आपने …………………
तहदिल आभार आपका….Madhuji….
very nice
तहदिल आभार आपका….Anjaliji….
बहुत उम्दा …………….अप्रितम लेखनी ………….बधाई हो !
तहदिल आभार आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिकिया का…..Nivatiyaji…
नमस्कार शर्मा जी……..
बहुत ही बेहतरीन…….
काबिले तारीफ रचना………..!!
नमस्कारजी….कहाँ रहती आप…..तहदिल आभार आपका….Kajalji…
Bahut sundar , Sharmaji…
तहदिल आभार आपका….Anuji….
Ati sundar ……Babbu JI
तहदिल आभार आपका….KIranji….
बहुत अच्छी रचना । लेकिन आईना झूठ नहीं बोलता।
तहदिल आभार आपका….आप शेर को दुबारा पढ़िये…आईने वाले को… Ram Gopalji….
ख़ूबसूरत ..बधाई |
तहदिल आभार आपका….Arun Shuklaji….
बहुत खूब ……., अत्यन्त सुन्दर …….,
सुस्वागतम…बहुत दिनों बाद दर्शन हुए…..तहदिल आभार आपका….Meenaji….