यादों को टटोलता पूछे मेरा बस्ता , अब तो अरसा बीता,गए मुझे तेरी पाठशाला।लेकर गए मुझे तुम हर एक ओर,सुन भी चूका अब वो अनसुनी शोर,अब तो देख भी ली मैंने तेरी मधुशाला,पर आता क्यूँ न नजर मुझे वो तेरी पाठशाला ।वो किताबो को समेटकर चढ़ना तेरी पीठ पर ,वो ट्रिन ट्रिन करती साइकिल और सकरी गलियों का सफ़र।हर मोड़ पर जनमता एक नया प्रश्न मन के अंदर ,और यही दिखाने में रहते, किसका बस्ता है बेहतर.इतरैली हंसी की पंखुड़ी काट कर,सांस की जगमगाहट और सफ़र नाप कर,ना कुम्हलाए न सकुचाये, बस दिल ने आवारा गीत सुनाए।गाती हवाओं से मुकाबला कर जानने उन प्रश्नों का उत्तर,स्वप्न नज़र की रंग जाती,जब करते प्रवेश उस मंदिर के अंदर।खोलकर तोड़कर मन के अंदर का हर ताला,बस चला करते उस ओर जहाँ थी अपनी पाठशाला ।अब यही पूछे मेरा बस्ता, क्यूँ छुटा वो पुराना रास्तातू गया लेकर मुझे हर एक शाला ,पर आता न नजर अब वो अपनी पाठशाला यादों को टटोलता पूछे मेरा बस्ता अब तो अरसा बीता, गए मुझे तेरी पाठशाला.nitesh banafer ( kumar aditya).
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bahut khoobsoorat yaadein hain…..tankan galtiyon ko theek keejiyea…..
ji sir….mai ispar kaam kar raha hu.aapke feedbacks bohot maayane rakhne hain.dhanyawad
bhut khoob likha hai apne………………….
meri rachana माता व्यथा भी पढ़कर टिप्पणी कीजिए….
bahut aabhar aapka….ji mai bilkul karunga.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति …………….बब्बू जी ने ठीक कहा ….टंकण अशुद्धियों के साथ भाषागत त्रुटियों पर ध्यान दे …..!!
बहुत ही खूबसूरत… यादो का कारवां….!!
Dhanyawaad
नितेश जी थोडे और सुधार से अापका प्रयास अच्छा रंग लाएगा।
agar aap log kUch sujhav de to ye mere liye sawbhagya ki baat hogi sir.