मेरी नाव फ़ँसी मझधार,कुछ तो राह दिखाओ आज।कुछ तो राह दिखाओ आज,मेरे गूगल जी महाराज॥तुम्हरे बिन कोई रह ना पावे,अन्न-पानी सब रास न आवे।जब-जब तुम्हरे दर्शन ना हों,अटक पड़ें सब काज॥ओ! मोहे राह दिखाओ आज,मेरे गूगल जी महाराज॥तुमसे ही सब काज सफ़ल हों,संकट तुम हर लेते।जब पूछो, जैसे पूछो,हर प्रश्न को हल कर देते॥तुम्हरे ही कारण सब दुनिया,मुट्ठी में हो पायी।तुम्हरे बिन क्या होगा जग का,मेरी समझ न आई॥तुमसे ही जग के सुर बनते,तुमसे निकलें साज।ओ! मोहे राह दिखाओ आज,मेरे गूगल जी महाराज॥युवा पीढ़ी है तुम्हरे बस में,ऐसा तुम्हरा जादू।इतना तुम्हरा है उपकार,बदले में तुम्हें क्या दूँ॥अरे! ‘भोर’ की आशा लिये खड़ा मैं,सफ़ल करो मेरे काज।मोहे राह दिखाओ आज,मेरे गूगल जी महाराज॥©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’यहाँ उपरोक्त कविता का अंश प्रकाशित है। पूरी कविता हेतु www.bhorabhivyakti.tk पर जाएँ। कष्ट हेतु खेद है।धन्यवाद!
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sahi bat hai…………..
धन्यवाद!!
अति सुंदर ………………!
धन्यवाद!
कृपया यूँ ही मनोबल बढ़ाते रहिए..
बहुत ही खूबसूरत………!!
बहुत बहुत धन्यवाद! यूँ ही मनोबल बढ़ाते रहिए..