तू चाहत हैकैसे बताऊ मैं तुझे आँखें तेरी कमाल हैयूँ तुम्हारे हँसने से हूए हम बेहाल हैखामियाँ तो सौ हैं हममेपर इस बात की भी राहत हैतू चाहत है ये चहरे की मासूमियतवो सर झुकाने की लतये तुम्हारे नाजुक हाथ हर पल दिल को देते मातडरना तो खैर तुम्हारी आदत हैपर इस खता की भी राहत हैक्योंकि तू चाहत हैचलने की तुम्हारी अलग ही अदा हैउसे देख ही तो तुमपे हूए हम फ़िदा हैतू जान भी मागे तो तैयार हैआखिर इधर भी तो चार हैमगर देने से किया इनकार है क्योंकि हमारी हर एक साँस सेहोती इस वतन की इबादत हैऔर तू है ही क्या , तू………सिर्फ चाहत है |जय हिंद द्वारा – मोहित सिंह चाहर ‘हित’
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शब्दों में तालमेल की कमी है …भावों का निरूपण अस्पष्ट है….फिर से देखिये आप इसे…..
DHanyaabaad S!R B!LKUL DHYAAN D!YAA JAAYEGA
bhav badhiya hai ……baki sharma ji ne kh diya hai…….
समझ में नहीं आई |
JIIII अरुण कान्त शुक्ला ji Kya Samajh NAH! AAAYA