मैंने कल रात इन सर्द हवाओं को अपने अंदर झाँकने दिया, कुछ दर्द के रेत थे वहां जिन्हे मेरे बीते हुए गम के आंसूं बिखरने से रोक रहे थे.पछतावे का लिबास ओढ़कर लहू भी मेरे कतरा बनकर अब छिपने लगे थे.कुछ तन्हाइयों का आलम भी मिला उन्हें जिनकी टूटती दीवारों ने मेरे उतारे हुए हर धुंधले उम्र को पहन रखा था.कुछ अहंकार की थकी हुई परछाइयाँ भी पड़ी मिलीं जो इस रात के अँधेरे में कहीं छिपतीं जा रही थीं.तो वहीँ एक खाली कोने से भी मुलाकात हुई उनकी, जो शायद कई बरसों से उस खालीपन का जश्न मन रहे थे.उन सर्द हवाओं को एक पुरानी टूटी हुई सांस के बर्तन भी मिलेे,जो अब इस मिटटी में उतरने का इंतजार कर रहे थे .एक नरम अधूरी मोहोब्बत की सुखी टहनियां भी मिली उन्हें ,जो अब राख होकर पूरा होने का ख्वाब देख रहे थे.अब सर्द हवाएं बहार आने लगी थी ,ये पूरा शरीर अब उसके शीतल मादकता में बेह रहा था.आँखों ने रात की चादर ओढ़कर अपनी कोर को आज पहली बार देखा और पलकें हस्ते हुए उन आँखों को सबसे छिपा सी गईं.फिर बची हुई उस आखिरी सर्द हवा ने मेरे इस अधूरे शरीर से उस पुरे रूह को अलग कर दिया और ले चला उस शुन्य की ओर जहाँ से मैंने खुद को पहली और आखिरी बार देखा.नितेश बनाफर ( कुमार आदित्य )
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sundar….tankan galityon ko dekhein ek baar…..
bht bht dhanyawad….hindi typing me galtiyaan meri font ki wajah se hai…updation ki jarurat hai.