मेंने दुनिया भर में भीख माँग ली है,हे मेरे प्रेमी! क्या अब वह समय आ गया है?जीवन की बंद हाथों से देह वायु की तरह ऊड़ जाए|मैं-तू की झूठी अनुभूति भी भूल जाऊं,आज नीले आकाश में तेरी प्यारी मुस्कान छायी रही, धरती की आँखें किसका बाट जोहती हैं कौन जाने?संध्या नहीं, प्रभात की नव किरणों का सुआग्मन हो रहा|तेरीे महान प्रेम-धारा निरंतर प्राणों पर मंजरी की भाँति स्पर्श करती है!काले बादलों के आँसू घाट पर विदा करने आए हैं|
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अति सुन्दर…….आप इतनी रचनाएं पोस्ट मत करिये एक दिन में ही…हमें रोज़ पढ़ने को मिले रचना आपकी तो अच्छा है न….आप दूसरों की रचनाओं का आनंद लेने के लिए वक़्त निकाल सकेंगे…..