हे प्रभु! क्या इस देह का अंतिम समय आ गया है? क्या जीवन का झरना थम रहा?मेरा अहंकार मिटाकर गीतों को गले से लगा ले,बस यहीं चाह है!बार-बार तुझे पुकार-पुकार मेरा मन रो देता हैै, तेरी झलक तेरे दर्शन के लिए युगों-युगों से प्यासी हैं ये आँखें!
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आप के भाव बहुत सुन्दर हैं पर सामंजस्य बिठाने की ज़रुरत थोड़ी बस……जो मुझे लगा….