शीर्षक – मैं याद आऊँगाये सच हैमैं तेरे अब काबिल नहीं मेरे प्यार में तेरा ऐतबार नहींअब दिल का दिल से करार नहींपर याद रखना जैसे तुमने मुझे नजरो के तीर चलाकर छलाजुल्फे झटका कर मुझे ठगाप्यार के अफ़साने गाएकोई तुम्हे भी अँधेरे में छोड़ जाएगारौशनी मिलेगी नहीं तुम्हेमेरे हिस्से के आंसू बहा देनातुम्हे नहीं पतातुमने दर्द दिया है कैसाहर रात अमावस होती हैमेरा प्यार तुम्हे मजाक लगता हैमेरा इंतज़ार तुम्हे बकवास लगता हैपर याद रखनाकोई तुम्हे भी इस आग में जला जाएगातुम्हे बार -बार तड़पाएगाजैसे मैं जी रहा तेरे दर्द को तुम तो जीते जी मर जाओगी उस पल मैं याद आऊंगा चला जाऊँगा तुमसे इतनी दूरतुम पुकारोगी तो सहीलेकिन मैं लौट ना पाऊंगामैं याद आऊंगामैं बस याद आऊंगा—अभिषेक राजहंस
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sundar….par daagdaar pankti na ho to behtar hai…….
Dhanyawaad sir
Aap us line ke jagah kya likhun jara batayen
iske bina bhi adhoori nahin rachna uss jagah pe….
Babbu Ji kaa sujhaav bahut uttam hai. Is line ko nikaal hi do……
bhut achhe………………….
कवि निर्मल और सहृदय होता है| आपकी बद्दुआएं देती कविता आपके मन की भडास जरुर निकाल गयी होगी , पर कवित्व में शायद ही ठहरे | सवाल सिर्फ एक पंक्ति का नहीं है, पूरी रचना निराशा की नहीं, निकृष्टतम प्रतिशोध से भरी है | मैं संकोचहीन होकर कहता हूँ,यह पसंद करने लायक नहीं|
इस प्रतिसोधात्मक रचना के लिए माफ़ी चाहता हूँ
पर सभ्य समाज की पहचान दिखाने की कोशिश की है मैंने
आज के युवा प्रेम की तड़प को सब्दो का रूप दिया है
पुन माफ़ी चाहता हूँ
कवि निर्मल और सहृदय होता है| आपकी बद्दुआएं देती कविता आपके मन की भडास जरुर निकाल गयी होगी , पर कवित्व में शायद ही ठहरे | सवाल सिर्फ एक पंक्ति का नहीं है, पूरी रचना निराशा की नहीं, निकृष्टतम प्रतिशोध से भरी है | पूरी रचना विरोधाभासी है| प्रारंभ में कहा जा रहा है ‘ये सच है मैं तेरे अब काबिल नहीं’ फिर प्रतिशोध किस बात का| मैं संकोचहीन होकर कहता हूँ,यह न कविता है और न ही पसंद करने लायक है|
आपने अपने पीड़ित मन की व्यथा को जिस प्रकार शब्दों में ढाला है..वो सावर्जनिक योग्य नहीं है ……….!
कवित्व और साहित्य का आधार निर्मल कथ्य का प्रयोग माना जाता है, भाषा कोई भी हो भाव कुछ भी हो मगर कहने का अंदाज रोचक होना उत्तम माना जाता है, साहित्य में प्रत्येक रस का प्रबल विन्यास मिलता है जिसके माध्यम से विशिष्ट प्रकार के भावो को प्रकट किया जा सकता है, लेखन का आधार का ऐसा होना चाहिए की आप अपनी बात भी कह जाये, आपका मंतव्य भी समझ आ जाये और अपरिष्कृत का भी आभास न हो !