बापू तुम्हारा तन नहीं पर मन यहीं है होना जिसे था नष्ट वह तो इति हुआ पर आदमी का कीर्ति यश होता अमर प्रकृति में यह चिर प्रतिष्ठित नियम दृढ है रहता मनुष्य शरीर अकिंचन कहीं है बापू तुम्हारा तन नहीं पर मन यहीं है आज भी तुम पर हैं करते गर्व हम आज तव स्मृति में मानते पर्व हम तेरा हृदय उसकी हर एक धड़कन यहीं है बापू तुम्हारा तन नहीं पर मन यहीं हैसत्य का पूजक तुम्हें सब जानते हैंहम तुम्हे अपना पिता-श्री मानते हैं प्रेरित तुंहरे मंत्र का जान-गैन यहीं है बापू तुम्हारा तन नहीं पर मन यहीं हैहर निष्कपट हिय में रहे तेरा बसेरा आदर्श मय हर शब्द है पर्याय तेरा आज राम -राज्य का दृढ-प्रण यहीं है बापू तुम्हारा तन नहीं पर मन यहीं हैजिसके लिए तुमने दिया बलिदान अपना आज क्रमशःहो रहा वह पूर्ण सपना सिंचित तुम्हारे रक्त का नंदन यहीं है बापू तुम्हारा तन नहीं पर मन यहीं हैधर्म और आदर्श की तेरी लड़ाई हिंसा रहित निष्काम कर्म की विदिहि सिखाई तुम जहाँ हो बुद्ध का दर्शन वहीँ है बापू तुम्हारा तन नहीं पर मन यहीं है
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bhut gajab………… behad khoobsurat rachana apki…….
aabhar