ठेस
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जिसको जितना चाहा उससे उतना दूर हो गये जब-जब किया हौंसला तब-तब मज़बूर हो गये उनकी नज़रो ने हमें पत्थर से शीशा बना डाला लगी क्या ज़रा सी ठेस टूटकर चकनाचूर हो गये ।।
ΟΟΟ
डी के निवातिया
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Beautiful lines, Nivatiya ji…
हृदयतल से आभार आपका ………………ANU Ji.
बहुत खूबसूरत पंक्ति से सजाया आपने।
चाहे थे हम इतना आंखों के नूर हो गये
लेकिन जलिमों के आगे मजबूर हो गये।
हृदयतल से आभार आपका ………………BINDU JI
बडा़ ख़ूबसूरती से ठेस को शब्दों में पिरोया है ,, ,,,,,,निवातियॉ जी
हृदयतल से आभार आपका ………………KIRAN JI.
bahut khubsurat rachna….
हृदयतल से आभार आपका ………………JUBER
बहुत ही बढ़िया ………………….. बेहतरीन Nivatiya Jee.
हृदयतल से आभार आपका ………………Sravjit Ji.
Behtreen ……..
हृदयतल से आभार आपका ………………SHISHIR JI.
वाह्ह्ह्ह…..बेहद ही उम्दा……………
हृदयतल से आभार आपका ………………BABBU Ji.
very nice nivatiya ji………
हृदयतल से आभार आपका ………………MADHU JI.