1.शिकायतों की आड़ में इश्क़ की आबरू को नंगा हमने खूब किया।जब खामियाँ दिखने लगी खुद में तो आईना हमने बदल लिया।।2.यादों के तहखाने में खोजता हूँ जिसे वो जहान मुझे मिल जाए। ख्वाबों के गलियारों में बस मेरे कदमो के निशान मुझे मिल जाए।।3.निकले थे ,ज़िन्दगी के बाजार में नफरतों का हिसाब मांगने।उधारी इतनी थी कि ईमान तक गिरवी रख आए।।4.एक कोलाहल सा है इस मन के शहर में।पंछी सारे घर लौट गए बस ये आसमान और ज़मीन बाकी है इस वीराने में।।5.बहोत ही उम्दा लोग रहते हैं यहाँ।बारूद के मकान बना ,आतिश जेबों में फिरते हैैं।।6.ज़िंदगी के समीकरण में दो और दो पाँच होते हैं।तुम मेरा गणित गलत बताते हो और मैं तुम्हारा नज़रिया।।7.जज्बातों के पैमाने से हमने दुनियादारी आँकी है।इश्क़ की इस जालसाजी में बस रूह का इम्तेहान बाकी है।।8.खुदगर्ज़ होके तन्हाई के आंगन में ,रात आज दंगल फिर होगा।अल्फाजों की इस कुश्ती में,चाँद तारों पे दांव पेंच आज फिर होगा।।
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bahut khoobsoorat……….
बढ़िया ..
Very nice…
बहुत बढ़िया विचार अभिव्यक्ति …………!!
bhut gajab …..bhut stik kathn………….
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