शरण तेरी जो पाई मैंने पाया मैंने आराम बड़ा दामन तेरा जो थामा मैंने हुआ यह इक काम बड़ा चलते २ तपती दोपहरी में मिल जाता है आराम ज़राजीवन जैसे कोई मरुस्थल क्या मैं जानू छोर कहाँ शरण में तेरी आई अब तो चिन्ताओं का क्या काम भलाहों राहें लम्बी चाहे जितनी रहे ज़ुबाँ पे तेरा नाम सदा सुख में दुख में तेरा सहारा दे दे चरणों की छाँव ज़रा चरणों में तेरे प्रभु जी मेरे मिलता मुझको आराम बडा़ चलती कभी जो गर्म हवाएँ भिगो दे पल में तू सारी धरा रिम झिम २ बरसें बूँदे फिर दे जाएँ वो बडा़ मज़ातुम जैसा न जग में कोई तुम्हारे लिए क्या काम बडा़ तुम बिन जीना कैसा जीना तेरा जग सारे में नाम बडा़ शरण तेरी जो पाई मैनें मिला मुझको आराम बडा़
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अति उत्तम रचना बहुत ही सुंदर कृति किरन जी ।
शर्मा जी सराहना के लिए बहुत 2धन्यावाद
bahut khoobsoorat………………
ब्बबू जी बहुत २धन्यावाद
Is rachnaa me aapke man kaa vairaagya jhalaktaa hai Kiran Ji ……Bahut khoob.
Shishir JI bahut 2 dhanyawad
Bahut sundar rachna, Kiranji…
Anu JI bahut 2 dhanyawad
बहुत ख़ूब ……………………. किरण जी!!
Sarvjit JI bahut 2 dhanyawad
ईश प्रेम में डूबी ……… उत्तम सृजन …………..किरण जी ……………
Nivatiyan JI ,Tahe dil se bahut 2 shukriya