शीर्षक- अब तो बसअब तो बसयही आखिरी चाहत हैज़िन्दगी की वीरानगियों परमौत का जलसा सजाऊँरेत में मिल जाऊँअब तो बस यही आखिरी चाहत हैअपने ज़िन्दगी के नाव कोमझधार में डूबाऊँरेत में मिल जाऊँअब तो बस यही आखिरी चाहत हैअपनी ज़िन्दगी के दीये कोखुद हीं बुझाऊँरेत में मिल जाऊँअब तो बस यही आखिरी चाहत हैअपने कफ़न का इंतजामखुद कर जाऊँरेत में मिल जाऊँअब तो बस यही आखिरी चाहत हैअपनी चिता में खुद हीं आग लगाऊँरेत में मिल जाऊँ ——-अभिषेक राजहंस
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bhut khoob …………udas palo ka sundar chitran kiya hai apne….
प्रेम जीवन का साज है | इसमें सफल संग संग जीते हैं और इसे प्राप्त करने में विफल इसके सहारे जीते हैं| प्रेम निराश नहीं करता | जीवन को स्पन्दन देता है| कुछ कवियों ने इसे मध्यकाल में बिना वजह नैराश्य में भी रच दिया जो दरअसल प्रेम का उपहास है |
मरने के और भी खबसूरत अंदाज हैं
किसी की याद में जीना भी, ख़ास आशीकी का अंदाज हैं
प्रेम में मरने की बात करे, वो ख़ाक प्रेम करेगा
प्रेम तो जीने का एक ख़ास अंदाज है
जिस ह्रदय में खिला रहता है प्रेम का उपवन
पतझड़ वहां आता नहीं, वीराने वहां से गुजरते नहीं
sundar………………
बहुत बढ़िया……………….. !!