कदम दो कदम इक साथ चलो तो बेहतर हैमधुर मीठी बातें भी करो तो बेहतर है। खोजने सकून चले हो अँधरी बस्ती मेंचिराग जलाकर साथ रखो तो बेहतर है। पहले कभी जो हौले से गुदगुदाती थीमुस्कराहट वही बिखराओ तो बेहतर है। प्यास बुझाना अब पनघट के बस में नहीं हैकुछ अश्कों को थिरकने दो तो बेहतर है। कहानी अधूरी है कविता पूरी नहीं होतीढाई अक्षर प्रेम के गुनगुनाओ तो बेहतर है। स्तब्ध मौन की सी ये थमती हुई साँसें हैंकुछ धड़कनों के साथ भी लो तो बेहतर है।…भूपेन्द्र कुमार दवे
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Behad umdaa rachnaa Dave ji …….
bahut sunder rachna bhupendra jee..
भूपेंद्र कुमार दवे जी रचना के लिए बधाई,
बहुत खूबसूरत प्रेरक रचना द्वे जी ….!
Behad khoobsoorat rachna Bhupendra JI
bhut gajab……………….
behad khoobsoorat………………