जिंदा है रावण का वायरस दस अवगुणों वाला दशानन माथे पर सवार होकर विराजमान है। वर्षों से आज तलक उसे जलाया नहीं गया उसकी ममी आज भी लंका में है हम पागल हर वर्ष रावण का पुतला दहन करते हैं दो दिन याद रखते हैं और फिर भूल जाते हैं अगले वर्ष तक निरंतर यही खेल चलता है कसमें खाते हैं शपथ लेकर और फिर दिलाकर उल्लू बनाते हैं। वक्त बदल रहा मौशम बदल रहे सरकारें बदल रही हम आप और वो नहीं बदलते क्यों कि सब के सब मकड़ जाल में फंस गये माया नगरी के उधेड़ बुन में उलझ गये। सौ में चार वायरस काफी है बाकी को वो कुछ नहीं समझता चैन लेने नहीं देता न देगा। जलाना है अपने अंदर के वायरस को जलाओ पुतला जलाने से कुछ नहीं मिलेगा लाखों खर्च करो सब बेकार ना समाज का भला ना फिर देश का विकास के लिए विचार किजिये उसे बदलिये। सत्यमेव जयते।
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Behtreen soch …..
तहे दिल सुक्रिया।
सर आप आज गुस्से में हैं…हाहाहा….बहुत ही उम्दा….क्या करें वायरस बहुत फ़ैल गया है…..और समझने का कोई त्यार नहीं है….
तहे दिल आभार श्री मान जी।
Bahut sunder……………………..
विजय जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
सत्य कहा आपने ………….वास्तविकता यही है ………….जो भी करते है या तो क्षणिक आनंद के लिए या परम्पराओ की मर्यादा बनाये रखने के लिए ….!!
एक जगह हमें भी लग रहा था ठीक किया है, नजर करें….. बहुत बहुत शुक्रिया।
Bahut sundar…
अनु जी बहुत बहुत शुक्रिया।
बहुत खूब ………………………… बिंदु जी !!
तहे दिल सुक्रिया श्री मान जी ।
श्री मान जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
Sharma JI theek kaha aapne ,hamen khud ko sudharne ki aavashyakta hai ,Desh mein discipline ki sakht zaroorat hai .abhi to bikhrav bahut hai
दिल से बहुत बहुत शुक्रिया कीरन जी।
very nice…………………………
तहे दिल आभार मधु जी।