शरद की वो रातशरद की वो रातआज वापस ला दोआसमान से बरसती काली राखबस आज रुकवा दोबन चुकी है खीर घर मेंउसे कैसे रखूं मैंखुले आसमां के नीचेऐ चाँद एक काम करोआज मेरे चौके में ही आ जाओऔर बूँद दो बूँद अमृतउसमें टपका दोअरुण कान्त शुक्ला, 5 अक्टोबर, 2017
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Achcha vyang Arun ji ……..
Nice imagination. ,,,,,,,,
बहुत सुन्दर व्यंग…..
सुंदर भावभिव्यक्ति अरुण जी ………..गहन भावो को समेटा है आपने ………….सूक्ष्म कथन में विस्तरात्मक विषय को अंकित किया है !
आप सभी को हार्दिक धन्यवाद ..
बहुत ही बढ़िया ………………………. अरुण जी !!
bhut gajab bhav hai apki rachana me……