“बात वही है मधुकर साहब, अंदाज बदल गये तर्ज़ वही है निवातिया जी आवाज़ बदल गये।” हम उनके रास्ते से हट गये तो क्या हुआ अपनी औकात से ही घट गये तो क्या हुआ। उनके जुस्तजू ने हमें नहीं छोड़े कहीं के पतंग की डोर के तरह कट गये तो क्या हुआ। वफ़ा जिंदगी से निहारते ही रह गये उनको उनके याद बिस्तर में लिपट गये तो क्या हुआ। गुफ्तगू में हमनें भी कोई कसर नहीं छोड़े जमाने के आगे हम सिमट गये तो क्या हुआ। पागल-मलंग – दिवाना यूंही नहीं कहता कोई इस सफर में “बिन्दु”भी भटक गये तो क्या हुआ।
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Bahut sunder…………………….
Bindu Ji ab har sher matle ke taartamy me bahut achcha lag raha hai .
Bahut sundar, Bindeshwar ji…
बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा जी,
सुंदर tukbandi ke lie बधाई
bahut badhiya……….
बहुत बढ़िया बिंदु जी…………मुझे कई जगह ऐसा लगा जहां “इ” की मात्रा होनी चाहिए और “ऐ” प्रयोग किया गया है …………….अति सुंदर !!