अंधकार के युग में उमीद कीएक रौशनी देखी थीआजादी के दीवानो के सिरसरफरोजी की तमन्ना कोपरवाने चढ़ाते देखा हैअपने खून से माँ केआँचल को धोते देखा हैहो खुला आसमां अपनाआजादी की धुप सेखिली हो धरती अपनीऐसे ख्वाबो को ऊँचाईअपने जज्बातो से देते देखा हैबन कर चट्टान की तरहनदियों के मुहाने कोबदलते देखा हैअपनी शरीर की चोटो कोसहलाते हुए अंग्रेजो के ताज कोगिराते हुए देखा हैअपनी जिंदगी से खेल करउन्हें देश की आजादी के लिएभारत माता के चरणों मेंअपनी हस्तियों कोमिटाते देखा हैउन शहीदों की यादो कोअमन ने अपनी नम आखो सेअपने शब्दों में उतरा है
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Bahut sunder…………………..
Thanks ji
अमन जी – रचना में देश प्रेम और धरती माता की आभा झलकती है, बहुत सुन्दर।
अति सुंदर ……………… कुछ एक टंकण त्रुटियाँ है जैसे ..उमीद नहीं उम्मीद ………..सरफरोजी नहीं सरफ़रोशी,,,,,, धुप नहीं धूप …आदि आदि.. पर गौर करे !
Thanks ji
Bahut sundar….
Thanks ji
Thanks ji
bahut sundar……….
Bhavuk desh prem rachnaa……