बड़े महंगे थे वो ख्वाब जो आज मुफ्त में बिक गए|एक दायरा बना के जिन्दगी का उसी में खप गये |परवाह थी कि चार लोग क्या कहेंगे ||जाना कहीं और था ,और किसी ओर ही गली मुड़ गए,जब उठने का समय आया तो करवट बदल फिर सो गये।डर था चार लोग क्या कहेंगे।।हिम्मत जुटा मन के तहखाने में ख्वाब नए ढूंढने हम फिर गए,पर उसे भी तमाशा वो एक नया बात हँसके चले गए।फिर दुनिया का ख्याल आया ,चार लोग क्या कहेंगे।।पूछा एक दिन खुद से ,कौन हैं ये चारा लोग जो इतना सस्ता भाव हमारा लगा गये ,अरमानों के जलते अलाव को महज राख वो बता उनको दफना गए।फिर ध्यान आया कि छोडो ,चार लोग क्या कहेंगे।।
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बेहद खूबसूरत….मन की उलझन…..”हार” नाम से मैंने कुछ कड़ियाँ लिखी हैं इसी तरह के विषय पे…. आप नज़र करियेगा….और सुझावों से अवगत ज़रूर करायेगा….
Bahut khoob maanav man ke jhanjhaavaato kaa chitran……
Man ke ander chall rahi uthal puthal ,,,,,,,,, ki log kya Kahenge
Par logon ka to kam hi hai Kuchh Kehna
Karna woh chahiye jo apne man ko bhaye
bhut sundar bhav hai…………….
Bahut khubsurat………………………..
अति सुंदर सृजन ………………!