कभी सोचता हूँ कि
कभी सोचता हूँ किजिंदगी की हर साँस जिसके नाम लिख दूँवो नाम इतना गुमनाम सा क्यों है ?कभी सोचता हूँ किहर दर्द हर शिकन में, हर ख़ुशी हर जलन मेंहर वादे-ए-जिंदगी में, हर हिज्र-ए -वहन मेंजोड़ दूँ जिसका नाम, इतना गुमनाम सा क्यों है ?कभी सोचता हूँ किसुबह है, खुली है अभी शायद आँखें मेरीलगता है पर अभी से शाम क्यों हैफिर सोचता हूँ वजह, तेरा चेहरा नजर आता हैचेहरा है, पर नाम गुमनाम सा क्यों है?कभी सोचता हूँ किलोग करते है फ़रिश्तो से मिलने की फ़रियादतेरे तसवुर में हमें रहता नहीं कुछ भी यादवो हाल जिसे छिपाने की कश्मकश में हूँमेरी निगाहों में सरेआम सा क्यों है ?कभी सोचता हूँ कि….
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kashmkash ka bahut khoobsoorat chitran……….
Ati sundar ……Shivdutt JI
bhut gajab…………………………………….
very nice…………………