उसे दर्द ने,कांटों पर सुला दिया ऐसा क्या उसको, जिंदा जला दिया। दर्द से पूछिये,दर्दे दिल की हाल बेइंतहा मुहब्बत,उसे भुला दिया। किनारा ढूंढने निकला था,वह भी कस्ती भंवर में ही, उसे झुला दिया। जिनके लिए तड़पता रहा,जिंदगी भर उनकी यादें,उनको ही रूला दिया। दगा दे गया इश्क,तो क्या करता दिले सुकूं के लिए “बिन्दु” को बुला दिया।
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Very nice …….sharma JI
बहुत बहुत शुक्रिया।
Kahi kahin Kuch missing lag raha hai Bindu ji or lingbhed bhi theek karne ki aawashyaktaa hai.
बहुत बहुत धन्यवाद मधुकर साहब।
आ. बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा जी,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई,
मतले में… रुला कर लें.
चौथा शेर… आंखों को चुला दिया।.. नहीं समझ आया..
लफ्ज़ सकूं नहीं होता सुकूं कर लीजिए या ऐसा करलें,
सुकूने दिल के लिए ” बिन्दु ” को बुला दिया।
…………..
दोस्तो कभी मेरा बताना किसी को बुरा भी लग जाता है
लेकिन रचना में वाह के साथ अगर कही टंकण गलती या और कुछ हो अवगत भी कराना चाहिए…
सादर..
हमने कुछ बदलाव किए हैं, कृपया एक नजर फिर डालें. बहुत बहुत धन्यवाद।
behad khoobsoorat…………tankan galti hain binduji……aap sahi kar leinge to or anand ayega….
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी।
Bahut sundar, Shishir ji and Sharmaji ke sujhav pe Dhyan de…
बहुत बहुत शुक्रिया अनु जी
भाव बहुत खूबसूरत है बिंदु जी …………….गुणीजनों के सुझाव सराहनीय है …………अवलोकन से रचनात्मक सौंदर्य को बल मिलता है !
तहे दिल आभार निवतिया जी
बहुत ख़ूब ………………. बिंदु जी !!
तहे दिल आभार सिंह जी।
Sunder Bhav.
बहुत बहुत शुक्रिया विजय जी।