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अधरों के पुष्प कँवल उनके खिलने लगे है !लगता है सनम से अब वो मिलने लगे है !!
कुछ तो असर जरूर हुआ उन पर इश्क कापास से गुजरते वक़्त कदम हिलने लगे है !!
गुफ्तगू में उनकी अदब का लहजा बदल गया !जुबान से उनकी अब लफ्ज़ फिसलने लगे है !!
कल तक बड़े मसखरे लिया करते थे सबके !अब कुछ कहते नहीं,लबो को सिलने लगे है !!
इसे मुहब्बत न कहे तो और क्या कहे “धर्म”सबसे नजरे चुराकर अब वो चलने लगे है !!
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डी के निवातिया
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लाजवाब ……………….. निवातिया जी!!
Behtreen rachnaa Nivatiya ji ……….
Beautiful expression ,, Nivatiyan ji
Nivatiya Ji, It beautiful expresion of the life and love,Great
Bahut sundar rachna….
बेहद उम्दा…..आपके लफ़्ज़ों पे हमारी नज़र बार बार फिसली….मन कहे कभी आगे चल…कभी कहे की दुबारा पढ़ पीछे वाला फिर से…हाहाहा….
Bahut sunder…sir…..lajabab..
True lins
जुबान से उनकी अब लफ्ज फिसलने लगे हैं..वाह निवातिया जी ,इश्क में कभी ऐसा भी होता है, सनम सामने होता है, जुबां खामोश होती है,
bhut sundar nivatiya ji…………………
आदरणीय धर्मेन्द्र जी,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई,