मुहब्बत ना हो जब बीच में तो फिर बात क्या करें तड़पे ना जो मिलन को उससे मुलाक़ात क्या करें दिन ही जब इस शहर में मुश्किलों से गुज़रता हो वहां किस के सहारे जी लें और कहो रात क्या करें ठंडी ओस की बूँदें भी चमक जाती हैं मोतियन सी अगर संग ही वो ना ठहरें तो फक़त पात क्या करें जहाँ पत्थर के सनम हैं वहां खुशियां नहीं आती हैं साथी ना हो जब काम का महज़ जज़्बात क्या करें जब डर हो अपनों के ही बिखर जाने का मधुकर को तुम ही कहो फिर ऐसी जगह कोई सवालात क्या करें शिशिर मधुकर
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Bahut hi sundar rachna,Shishir ji…sahi kaha aapne, apno ke bhikhar jane ka dar sayad sabse jyada hota..
Thank you so very much Anu for your lovely comment on this work.
बहुत अच्छी ग़ज़ल मधुकर जी।
Bahut bahut dhanyavaad Bindu Ji ………………
दिल की गहराइयों को छूती खूबसूरत कृति……………….अति सुन्दर शिशिर जी !
Tahe dil se shukriyaa Nivatiya Ji ………………………
Bohot sundar Madhukar ji.. “जब डर हो अपनों के ही बिखर जाने का मधुकर को
तुम ही कहो फिर ऐसी जगह कोई आघात क्या करें” – Apki in panktiyon mei gehra bhaav chuupa hai.. Ati sundar
Thank you so very much Niharika for your words.
बहुत ही बढ़िया …………………………. मधुकर जी !!
Tahe dil se shukriya Sarvjeet …………
अति सुन्दर ,,,,,,,शिशिर जी
Bahut bahut shukriya Kiran ji …………
बेहद खूबसूरत ……… अंतिम पंक्ति में ‘आघात’ मुझे उपयुक्त नहीं लगता… अपनों के बिखरने के डर से बात नहीं करेगा…जज़्बात अपने ज़ाहिर नहीं करेगा…ऐसा तो है…’आघात’ तंज भरे शब्दों के लिए प्रयोग हो सकता है पर तंज पहली पंक्ति नहीं ज़ाहिर करती…वो माहौल नहीं बताती लगती… शायद मैं कुछ अलग से सोच रहा हूँ… पता नहीं….
Thank you so very much Babbu ji for your critical observation. suggest some other kaafiya. I’ll also think over.
mujhe yeh better lagta hai…..complimentary to first line of couplets… Thanks…
So very nice of you Babbu Ji .You always help me to do better.
दिन ही जब इस शहर में मुश्किलों से गुज़रता हो
वहां किस के सहारे जी लें और कहो रात क्या करें
क्या इजहारे तरीका है, मधुकर जी | वाह ..बेहतरीन गजल |
Tahe dil se shukriya Arun Ji …………..
bhut khoob………………………
Bahut bahut dhanyavaad Madhu Ji ………………………