इस बरसात मेंपहली बार बारिश हुई इस बरसात मेंपहली बार भीगी सहर देखी इस बरसात में,पहली बार सड़कें गीली देखीं इस बरसात मेंपहली बार कीचड़ सने पाँव धोये आँगन में इस बरसात में,पहली बार साँसों में सौंधी खुशबू गई इस बरसात मेंपहली बार कच्छा-बनियान नहीं सूखीं इस बरसात में,सूखी तो गुज़री हैं अनेकों बरसातें बरसात मेंपहली बार खड़ी फसलें बर्बाद देखीं इस बरसात में,उमस के मौसम तो देखे अनेकों बरसात मेंपहली बार उमस को बरसते देखा इस बरसात में,सावन की झड़ी और भादों की बारिश तो बिसरी यादें हैंपहली बार जेठ की तपती दुपहरी देखी इस बरसात में,काले काले बादलों को उमड़ते-गरजते-चमकते तो देखा हर बरसात में‘गरजने वाले बरसते नहीं’ पहली बार सच होते देखा इस बरसात में,अरुण कान्त शुक्ला20 सितम्बर, 2017
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badalte parivesh me hone vaale parivartanon par prakaash daalti achchi rachnaa arun ji …….
धन्यवाद मधुकर जी |
वारिस के बदलते तेवर उनके बदलते रंग कटाक्ष करती एक परिवेश की कहानी, जिसने सब कुछ देख कर भी कुछ नहीं देखा।
धन्यवाद शर्मा जी |
वर्षा ऋतू का वर्तमान परिपेक्ष्य में बहुत खूबसूरत वर्णन अति सुंदर शुक्ला जी ………………….हम अन्य लोगो की रचनाओं पर भी अपने विचार व्यक्त करे सभी को अच्छा लगेगा !
धन्यवाद निवातिया जी | आपके आदेश के पालन की कोशिश अवश्य करूंगा |
बरसात की छटा बिखेर दी….मनमोहक…..‘गरजने वाले बरसते नहीं’ पहली बार सच होते देखा इस बरसात में’ ….व्यंग भी क्या कमाल है…. दावे सब करते हैं बरसात से पहले…लेकिन बरसात पोल खोल देती सब की… हाहाहा…..
bhut khoob………………….