‘ज़िन्दगी’ में उल्फ़ियत तो है,सब के मन में बन्दियत तो है।कसर भी नहीं रही कुछ भी,इंसानियत ही तो मन में है।गुमांन करते फिरें शख़्स ख़ुद पर,ऐसी उनमें वसी आवारगी तो है।तमन्ना फड़फड़ातीं तो हैं,बड़ी उलझनों में छिपी ‘ज़िन्दगी’ तो है। सर्वेश कुमार मारुत
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अच्छी सोच, बड़ी बात कहने की अच्छी कोशिश। बहुत सुन्दर सर्वेश जी।
अति सुंदर ………..!
सुन्दर|
‘ज़िन्दगी’ में उल्फ़ियत तो है,
सब के मन में बन्दियत तो है।
कसर भी नहीं रही कुछ भी,
इंसानियत ही तो मन में है।
मुआफ करें मुझे….आपका मतलब नहीं समझ पाया मैं….स्पष्ट करेंगे तो मुझे आसानी होगी…. और ‘उल्फ़ियत’ ‘बन्दियत’ के मायने क्या हैं यहाँ…आगे से आप मतलब नीचे लिख देंगे तो अच्छा रहेगा समझना….