भींगी आँखेसिसकती होठों के फरियाद कोदुखा कर परस्पर चलाजो देखा करती थी राह कभीउन ख़्वाबो को रुलाकर क्या मिला खुद फ़रियादी हुआ करता था कभीदर गुजर कर किसी के राह परमाना कि आज मुकल्लम है तुपर किसी के फ़रियाद कोठुकरा कर क्या मिला खुद के सिसकती आँखों कोना देखा तूने कभीआज उनके आँसूओं परमुस्कुरा कर क्या मिला होकर यु मासूम तेरे दर पर सेजा रहा है कोईआज किस्मत का ठुकराया हूँ मैंजब किसी को आस न दियातो क़िस्मत की गठरी लेकर क्या मिला✍✍✍✍मु.जबेर हुसैन
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sundar……………
Thanks…
bahut acche Husain g..
Thanks. .
अच्छी रचना।
Thanks,,,🙏🙏🙏
very nice………..
Thanks🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सुंदर रचना है. थोड़ा टाइपिंग मिस्टेक को ठीक कर लें “किया” के स्थान पर “क्या” करें.
आभारआदरणीय,,,,🙏🙏
टाइपिंग मिस्टेक में सुधार करने की कोशिश करते हैं और अच्छी प्रस्तुति प्रस्ताव रखने की कोशिश करते है।।।
bhut badhiya………… vijay ji sahine farmaya hai…..
आदरणीय,,,🙏🙏
अच्छा प्रयास लिखते रहिए
Thanks. .