अंग्रेजी है मैडम उनकी, उर्दू इनकी शहजादी।हिन्दी राजकुमारी अपनी, संस्कृत सबकी परदादी।।भारतमाता के माथे की आभावत चमके बिन्दी।तन-मन जिसपर न्यौछावर हो, वह ही है अपनी हिन्दी।।चिन्तन हिन्दी, मन्थन हिन्दी,अध्ययन-अध्यापन हिन्दी।रग-रग में जो रमी हुई है-‘पान-अपान वात हिन्दी।जिसमें है ब्रह्माण्ड समाहित सद्विचार सूक्षम चिन्दी।तन-मन जिसपर न्यौछावर हो, वह ही है अपनी हिन्दी।।1।।सूर्य-चन्द्र का तेज है हिन्दी,प्रखर वायुवत् ओज है हिन्दी।मृदा-गन्ध अरु अम्बु-सुरस-शून्यान्वित ध्वनि भी है हिन्दी।मानस-गती चित्त का चिन्तन, आत्म-चेतना अनुबन्धी।तन-मन जिसपर न्यौछावर हो, वह ही है अपनी हिन्दी।।2।।दृढ़ इच्छा शक्ती है हिन्दीज्ञानशक्ति विज्ञान है हिन्दी।क्रियाशीलता सह उपयोगीआतमबल विश्वास है हिन्दी।यही साधना अनुष्ठान की फलवत मिलती रिद्धी-सिद्धी।तन-मन जिसपर न्यौछावर हो, वह ही है अपनी हिन्दी।।3।।प्रजनन, शैशव, यौवन हिन्दी,प्रौढ़, बुढ़ापा, निधन भी हिन्दी।हर पल जिसमें जन्म-मरण का‘सत्य-बोध’ करवाती हिन्दी।सुगठित संस्कारवत् उद्गम, चिदानन्द अनुभव आनन्दी।तन-मन जिसपर न्यौछावर हो, वह ही है अपनी हिन्दी।।4।।ब्रज-अवधी-बुन्देली हिन्दी,भोजपुरी-पांचाली हिन्दी।मारवाड़ि हरियाणि मैथिलीपग-पग रूप बदलती हिन्दी।यहां विविधता सुदृढ़ एकता का दर्शन नित होता फन्दी।तन-मन जिसपर न्यौछावर हो, वह ही है अपनी हिन्दी।।5।।साहित्यिक-समृद्ध है हिन्दी,संस्कृति का दर्पण हिन्दी।सामाजिक एकता बनाती‘जीवन-शैली दर्शन’ हिन्दी।जन-जन की अभिलाषा भाषा के स्वरूप में प्रगटी हिन्दी।तन-मन जिसपर न्यौछावर हो, वह ही है अपनी हिन्दी।।6।।- देवेश शास्त्री
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बहुत अच्छे…………….
बेहद सुंदर ……………………..
Maatr bhaashaa ke prati prem darshaati khoobsoorat rachnaa……..
सही कहा है आपने……….अपनी मातृभाषा बोलने अपनाने में शर्म क्यूँ है…..गुलाम हो रहे मन से हम…. हमारा सब का दायित्व है हिंदी को भारत माँ की बिंदी सही रूप में बनाना….
Sateek vishleshan aapka…………..ati sundr