डूबा हूँ आँसुओं में, ले दर्द का सहाराये कम क्या मुझ पर अहसान यह तुम्हारावे और लोग होंगे व्यथित, लहरों के संग भटकेमुझको तो धार में ही,हरदम मिला किनारा |उजड़े चमन की कलियों ने, मुस्कुरा के पुछा-बता दो जरा क्या हाल है तुम्हाराजब मिले क्षण तोड़ना कायरों की उड़ान,फूलों ने सुगंध फैला, कैसा सुंदर किया ईशारा |निस्सार संसार के तुच्छ लोगों ने, कैसा लूट अपनों को हरदम बिसारामगर कहाँ रह सके जो थे ऐंठते वे, काल उनके आँगन में आकर गंभीर रुदन पसारा |जो वीर होंगे सदा व्रती दुःखियों हित,महकाते रहेंगे उजड़े चमन हर घाटी को साराखिलाते रहना फूलों जैसा सुगंधित ‘आलोक’पुण्य का है काम यह तुम्हारा |जय हिन्द !© कवि आलोक पाण्डेय
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